शिरोमणी व दिल्ली कमेटी ने गुरु साहिब का स्थान तोड़ने की मंजूरी कैसे दी,जीके ने पूछा सवाल

मामला उड़ीसा के मंगू व पंजाबी मठ को तोड़ने की सहमति देने का इतिहास से खिलवाड़ न करें शिरोमणी कमेटी: जीके जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब उक्त मठों को ढाहने की मंजूरी देने वालों की तलाश करें सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुरु नानक देव जी के द्वारा आरती उच्चारण के स्थान को ढहाने पर गुरुवार को लगाई गई रोक का सिखों ने स्वागत किया है। 'जागो' पार्टी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर के पास स्थित मंगू तथा पंजाबी मठ के पुरातन ढाँचे की यथास्थिति को फिलहाल संबंधित पक्षों से बातचीत किए बिना न छेड़ने के कोर्ट के आए फैसले पर खुशी जताई है। साथ ही शिरोमणी कमेटी को उड़ीसा सरकार से बातचीत करते समय सिखों की भावनाओं की कद्र करने की अपील की है। जीके ने खुलासा किया कि दिल्ली कमेटी व शिरोमणी कमेटी के शिष्टमंडल के द्वारा उक्त मठों को तोड़ने की मंजूरी स्थानीय प्रशासन को देने का दावा मामले के याचिकाकर्ता अजमेर सिंह रंधावा के द्वारा किया गया है। यदि यह सच है, तो सिख कौम के लिए इससे बड़ी नमोशी वाली कोई बात नहीं हो सकती। क्योंकि कौम की प्रतिनिधी संस्थाएँ ही गुरु स्थान तुडवाने पर आमादा नजर आ रही है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष जीके ने कहा कि गुरु साहिब के आरती उच्चारण के स्थान पर दुविधा की स्थिति को साफ करने की भी शिरोमणी कमेटी की जिम्मेदारी बनती है। क्योंकि शिरोमणी कमेटी के द्वारा खुद छापी गई पुस्तकें यह बताती है कि गुरु साहिब ने मंगू मठ के स्थान पर आरती का उच्चारण किया था। पर अभी हाल ही में पुरी गए शिरोमणी कमेटी के शिष्टमंडल का दावा है कि मंगू मठ के स्थान पर गुरु नानक देव जी नहीं बल्कि उनके पुत्र बाबा श्री चंद जी आए थे। गुरु साहिब ने तो गुरुद्वारा बाउली साहिब वाले स्थान पर आरती उच्चारित की थी। जीके ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा सरकार को सिखों के संबंधित पक्षों से बातचीत किए बिना कुछ भी नहीं ढाहने का आदेश दिया है, तो अब शिरोमणी कमेटी की जिम्मेदारी कई गुणा बढ़ गई है। जीके ने जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले के याचिकाकर्ता रंधावा के द्वारा शिरोमणी कमेटी के सचिव रूप सिंह को कल एक ई-मेल भेजी गई है। जिसकी काॅपी हमें भी प्राप्त हुई है। उसमें याचिकाकर्ता द्वारा दिल्ली व शिरोमणी कमेटी पर तथ्यों के साथ खिलवाड़ करने के गंभीर दोष लगाए गए है। जीके ने सवाल किया कि मंगू व पंजाबी मठ पर उदासी संप्रदाय का कब्जा होने के कारण क्या हम गुरु साहिब के आरती उच्चारण के स्थान के अस्तित्व को नकारने की गुस्ताखी कर सकते है ? जबकि श्री हरमंदिर साहिब पर भी किसी समय गैर सिखों का कब्जा हो गया था, तो क्या सिखों ने उसे अपने कब्जे में लेकर सिख मर्यादा लागू करके कोई गलती की थी ? जीके ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उड़ीसा सरकार के वकील के द्वारा किया गया दावा कि सिख संगठनों ने सरकार को उक्त मठ ढहाने की मंजूरी दी हुई है, बहुत हैरानी भरा है। यह मंजूरी किसने व क्यों दी, इसकी जाँच जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब को तुरंत करनी चाहिए।